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अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 121
और वैमानिक देव सेवा में उपस्थित रहेंगे। लहरों से संकुल महासागर को भुजाओं द्वारा तैरने से संसार-सागर पार करेंगे। जाज्वल्यमान आलोक प्रसरित कर भास्कर को देखने से आप केवलज्ञान और केवलदर्शन को प्राप्त करेंगे। वैडूर्यमणि-सम आंतों से मानुषोत्तर पर्वत को वेष्टित करने से आपकी कीर्तिपताका मानुषोत्तर पर्वतपर्यन्त दिग्-दिगन्त में
फैलेगी। __10. सुमेरु पर आरूढ़ होने से आप समवसरण में सिंहासन पर
विराजकर धर्मतीर्थ की संस्थापना करेंगे।
स्वप्न फलितार्थ बतलाकर उत्पल नैमित्तिक ने कहा, प्रभो! नौ स्वप्नों का यह अर्थ जाना है, लेकिन चतुर्थ स्वप्न का फलित मुझे ज्ञात नहीं हो रहा है। आपश्री चतुर्थ स्वप्न का फलितार्थ कहने की कृपा करावें । तब करुणासागर भगवान् ने चतुर्थ स्वप्न का अर्थ बतलाते हुए कहा कि उत्पल! चतुर्थ स्वप्न में दो रत्नमालाएं देखने का यह तात्पर्य है कि मैं आगार (श्रावक) और अणगार (साधु) इन उभय धर्मो की प्ररूपणा करूंगा। इस प्रकार स्वप्न फलितार्थ श्रवण कर भगवान के अतिशय को दृष्टिगत कर, विस्मय से अभिभूत होकर स्वयं उत्पल घर की ओर लौट गया और प्रभु ध्यान में लीन हुए। उन्हें इस चातुर्मास में इस यक्ष-उपसर्ग के बाद अन्य कोई उपसर्ग नहीं आया। वे शान्त-प्रशान्त बनकर साधना करने लगे। इस प्रकार अवशेष चातुर्मास अर्धमासक्षपण की तपस्या करते हुए व्यतीत किया।
चातुर्मास परिपूर्ण होने के पश्चात् जैसे ही भगवान् अस्थिकग्राम से विहार करने लगे उसी समय शूलपाणि यक्ष उपस्थित हो प्रभु चरणों में अवनत बना और चरण-वन्दन कर निवेदन किया- भगवन्! आप अपने सुख को गौण करके मात्र मुझ पर दया करके मेरा जीवन सुधारने के लिए यहां पधारे, परन्तु मेरे जैसा कोई पापी नहीं। मैंने आपको कितना कष्ट पहुंचाया और आप जैसा कोई दयावान स्वामी नहीं जो मुझ जैसे पर इतना उपकार किया। आप नहीं आते तो मेरा क्या होता? आपने मुझे दुःखों की अनन्त यात्रा से बचा दिया। इस