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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर
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ये सिद्धार्थनन्दन चरम तीर्थंकर महावीर हैं । तुमने इनको अपरिमित कष्ट पहुंचाया है। अब यदि शक्रेन्द्र को ज्ञात होगा तो तुम्हें बहुत दण्ड देगा। यह श्रवण कर शूलपाणि और घबराया और चरणों में गिरकर पुनः पुनः क्षमायाचना करने लगा । क्षमायाचना कर अन्तर्धान हो गया" | अस्थिग्राम की प्रथम रात्रि, प्रथम चातुर्मास और चातुर्मास का प्रथम मास जिसमें प्रभु महावीर को घोर उपसर्ग का सामना करना पड़ा। जब शूलपाणि उपसर्ग देकर लौटा तब तक रात्रि का अन्तिम प्रहर भी व्यतीत हो रहा था। भगवान का शरीर रात्रिभर उपसर्ग सहन करने के कारण क्लान्त वन रहा था । उस समय प्रभु को एक मुहूर्त के लिए खड़े-खड़े ही नींद आ गयी। उस निद्रावस्था में प्रभु ने दस स्वप्न देखे । वे स्वप्न इस प्रकार थे
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था।
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एक भयंकर ताड़ - पिशाच प्रभु के सामने उपस्थित है और भगवान उसे मार रहे हैं।
एक श्वेत पुंस्कोकिल, जो अत्यन्त उज्ज्वल दीख रही है । एक रंग-बिरंगी कोयल, जो अत्यन्त सुन्दर दीख रही है प्रभु के सम्मुख दो रत्नमालाएं उपस्थित हैं ।
श्वेत गायों का समूह सामने आ रहा है ।
विकसित पदमसरोवर स्वच्छ तरंगायित जल से व्याप्त है ।
एक विशाल समुद्र, जिसमें लहरों पर लहरें उठ रही हैं। प्रभु अपने शक्तिशाली भुजबल से तैरकर पार कर रहे हैं। उज्ज्वल आलोक से आलोकित सूर्य सम्पूर्ण विश्व को प्रकाशमान बना रहा है।
प्रभु अपनी उज्ज्वल आंतों से मानुषोत्तर पर्वत को आवेष्टित कर रहे हैं।
प्रभु कनकमण्डित सुमेरु पर आरोहण कर रहे हैं | 27 स्वप्न-दर्शन के पश्चात् आंख खुली तब तक सवेरा हो चुका
इधर ग्रामवासियों ने रात्रि में हुए यक्ष के भीषण अट्टहास से अनुमान लगाया कि वह संन्यासी तो मृत्यु को प्राप्त हो चुका होगा । सभी को वृत्तान्त जानने की जिज्ञासा बनी हुई थी लेकिन पुजारी आये