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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर 111 I थे" । वे भोजन हाथों में ही करते थे । आवश्यक चूर्णि में ऐसा उल्लेख मिलता है कि प्रथम पारणे में प्रभु ने गृहस्थ के पात्र में भोजन किया " लेकिन यह संगत प्रतीत नहीं होता, क्योंकि तीर्थंकर भगवान पूर्ण यतना और विवेक से ही कार्य करते हैं । भयंकर शीत में भी प्रभु ने वस्त्र से तन ढकने का प्रयास नहीं किया। विहार करते हुए शरीर में कभी खुजली आदि आती तो वे शरीर की ममता-रहित होकर कभी भी शरीर को खुजलाते नहीं थे । यदि कदाचित् आंख में तिनका या रजकण गिर जाता तो उसे बिना निकाले समभावपूर्वक वेदना सहन करते थे । महलों की भूमि में पलने वाले, जिन्होंने गृहस्थावस्था में ऊबड़-खाबड़ भूमि पर कभी गमनागमन नहीं किया, वे प्रभु कैसे-कैसे विकट स्थानों में विकट परीषह सहकर कर्म - बन्धन से मुक्ति की ओर प्रयाण कर रहे हैं। कई बार विहार करने के पश्चात् उनको मकान भी मिलना कठिन होता था तब भगवान शून्य खण्डहरों में ही रात्रि - विश्राम के लिए ठहर जाते। कई बार प्याउओं में, दूकानों में, लुहारशाला में, सुनारशाला में, मंचों में, प्रभु यामा व्यतीत करते थे। कभी कहीं भी स्थान न मिलने पर श्मशान भूमि में, वृक्षादि के नीचे ठहर जाते थे । उन शून्य स्थानों पर अनेक उपसर्ग प्रभु को सहन करने पड़ते थे। कभी सर्प तीक्ष्ण डंकों से डसते थे, कभी नेवले शरीर को काटते थे। कभी गिद्ध मांस नोचते थे, कभी अन्य वन्य जीव शरीर को असह्य वेदना पहुंचाते थे, परन्तु परीषहजयी प्रभु महावीर कभी भी उपसर्गों से विचलित नहीं होते थे । -- शून्य गृहादि में ध्यानस्थ प्रभु को देखकर कोतवाल आदि चोर या व्यभिचारी समझकर कई बार प्रभु के पास आते, उनसे प्रश्न करते कि आप कौन हैं? कहां से आये हैं? लेकिन भगवान मौन रहते थे । वे कोतवाल आदि उन्हें प्रताडित करते. अपशब्द इत्यादि बोलते थे पर प्रभु प्रत्युत्तर नहीं देते हुए समभाव - पूर्वक साधना करते थे।" कभी भगवान बगीचे आदि में साधना करते और कोई पूछता कि तुम कौन? प्रभु उत्तर देते - मैं भिक्षुक हूं। तब उन्हें कहते, चले जाओ यहां से। यह श्रवणकर समभावी प्रभु शीघ्र ही वहां से विहार कर देते।
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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