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________________ महिषी चेलना को यह सब कुछ बताकर कहा, "जान पड़ता है, वह साधु कोई बहुत बड़ा जादूगर या तान्त्रिक है।" पर राजमहिषी चेलना ने विम्बसार की बात का विरोध किया। उन्होंने कहा-"नहीं, वह अवश्य कोई जैन मुनि हैं ! आपने उन्हें दुःख देकर बहुत बड़ा पाप किया है। आपको अपने बुरे आचरणों के लिए प्रायश्चित करना चाहिए।" पहले तो बिम्बसार ने राजमहिषी चेलना की बात को हंसी में उड़ा दिया, पर जब उन्होंने उन पर अधिक जोर डाला, तो वह राजमहिषी चेलना के साथ यमधर की सेवा में पुनः उपस्थित हुए। यमवर पूर्ववत् तपस्या में रत थे। उनके शरीर पर लाखों चींटियां चढ़ी हुई थीं। चींटियों ने काट-काटकर उनके शरीर को क्षत-विक्षत कर दिया था। पर आश्चर्य ! वह फिर भी ध्यान में डूबे हुए थे। राजमहिषी चेलना की आंखें सजल हो उठीं। उन्होंने अपने हाथों से यमधर के शरीर पर चढ़ी हुई चींटियों को हटाया और उनके शरीर पर चन्दन का लेप किया। प्रेम और श्रद्धा के स्पर्श से मुनि ने आंखें खोल दी। बिम्बसार अपनी राजमहिषी चेलना के साथ उनके सामने खड़े थे। मुनि ने दोनों को एक साथ धर्म-वृद्धि का आशीर्वाद दिया, क्योंकि उनकी दृष्टि में उपकार या अपकार करने वाले में कोई अन्तर नहीं था। इस बात से बिम्बसार बहुत प्रभावित हुए । मुनि ने अपने आशीर्वाद से बिम्बसार के जीवन को बदल दिया। बिम्बसार मुनि की कृपा से जैन-धर्म के आराधक बन गए। मुनि के आदेशानुसार बिम्बसार विपुलाचल पर भगवान महावीर की ६४
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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