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________________ धरती पर लोटने लगे। यमधर की अहिंसा और उनकी क्षमाशीलता ने शिकारी कुत्तों के हृदय में भी अमृत घोल दिया। बिम्बसार ने इस घटना को विस्मय की दृष्टि से देखा तो, पर उनके मन पर उसका प्रभाव न पड़ा। उन्होंने इसका दूसरा ही अर्थ लगाया। वह मन-ही-मन सोचने लगे, अवश्य ही यह साधु कोई मायावी है। अपनी माया से ही इसने कुत्तों को वशीभूत कर लिया है। फिर तो उन्होंने तरकश से बाण निकालकर साधु पर चलाने आरम्भ कर दिए । पर आश्चर्य ! बिम्बसार के बाण यमघर को रंचमात्र भी क्षति नहीं पहुंचा सके । वह पहले की भांति ही तप में मग्न रहे। पर इससे क्या बिम्बसार के मन की कोप-ज्वाला शान्त हो गई ? नहीं, वह तो और भी भड़क उठी। उन्होंने किसी प्रकार भी अपना वश चलता न देखकर एक मृत सर्प यमधर के गले में डाल दिया। पर इससे भी यमधर का क्या बिगड़ता? वह पहले की भांति ही धीर, वीर और गम्भीर बने रहे। बिम्बसार जब लौटकर अपने राजभवन में गए तो उन्होंने बड़े गर्व के साथ अपनी राजमहिपी चेलना को बताया कि आज उन्हें किस प्रकार एक साधु मिला था, किस प्रकार उन्होंने अपने शिकारी कुत्ते उस पर छोड़ दिए थे, किस प्रकार शिकारी कुत्ते उसके पास जाकर उसके चरणों में लोटने लगे थे, किस प्रकार उन्होंने उस पर बाण चलाए थे, किस प्रकार उनके वाण विफल हुए थे और किस प्रकार वह उसके गले में मृत सर्प डालकर नगर की ओर लोट पड़े थे। विम्बसार ने राज
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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