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कन्या नन्दश्री का विवाह उनके साथ कर दिया। बिम्बसार का दूसरा विवाह विलासवती के साथ हुआ था। विलासवती केरलनृपति मृगांक की पुत्री थी। केरल-नरेश मृगांक बिम्बसार का बड़ा आदर-सम्मान करते थे ।
उन्हीं दिनों मगध के राज्य-शासन में बड़े-बड़े परिवर्तन हुए। उपश्रेणिक की मृत्यु हो गई और उनके पश्चात् चिलातीपुत्र राजसिंहासन पर बैठे। पर कुछ ही दिनों के पश्चात् वह सब कुछ छोड़कर जैन साधु हो गए, और वन में चले गए। बिम्बसार को जब यह समाचार प्राप्त हुआ, तो वह शीघ्र ही मगध जा पहुंचे । वह राज-सत्ता को अपने हाथ में लेकर शासन करने लगे।
पर उस समय बिम्बसार जैन-धर्म के विरोधियों में थे। वह जैन-साधुओं की निन्दा तो करते ही थे, जैन धर्मावलम्बियों को कष्ट पहुंचाने में भी संकोच नहीं करते थे। एक दिन बिम्बसार पांच सौ शिकारी कुत्तों को लेकर एक वन में आखेट के लिए गए । वन में उन्हें एक साधु दिखाई पड़े, जो तप में संलग्न थे। साधु जैन थे और उनका नाम यमधर था । बिम्बसार के मन में जैन-साधुओं के लिए पहले से ही द्वेषाग्नि तो थी ही, यमधर को देखते ही वह भड़क उठी। उन्होंने अपने सभी शिकारी कुत्तों को संकेत किया और वे यमधर की ओर झपट पड़े। पर यमघर को किसी के राग-द्वेष से क्या तात्पर्य ? वह तो राग-द्वेषों के जेता थे। शिकारी कुत्तों के झपटने पर भी वह अपने स्थान पर हिमालय की भांति अडिग रहे। आश्चर्य, महान आश्चर्य, शिकारी कुत्ते यमघर के पास पहुंचकर, पूंछ हिला-हिलाकर
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