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सहायता पर प्राप्त किया जा सके ।"
भगवान महावीर की समत्व - दृष्टि को देखकर देवराज इन्द्र को भी उनके सम्मुख विनत हो जाना पड़ा। भगवान महावीर को छोड़कर इस जगत में और दूसरा कौन हो सकता है, जो शासक और सेवक को एक ही दृष्टि से देखेगा, एक ही समान समझेगा ।
गोपाल की भांति ही चण्ड कौशिक ने भी भगवान महावीर को अत्यन्त पीड़ा पहुंचाने का दुस्साहस किया था । पर उसे भी भगवान महावीर के अडिग धैर्य और प्रेम के सम्मुख नतमस्तक होना पड़ा । चण्ड कौशिक एक महाविषधर सर्प था । उसके अत्याचार की कहानी भी भगवान महावीर के प्रबल पराक्रमत्व पर प्रकाश डालती है ।
एक तपस्वी था । शिष्य के बार-बार कुछ कह देने पर उसे क्रोध आ गया और वह उसे मारने के लिए दौड़ा परन्तु रात के अंधेरे में खम्भों से टकराकर वह मर गया ।
तपस्वी मरकर भी अपने तपोबल से फिर तापस बनाआश्रम का अधिपति । नाम था उसका चण्ड कौशिक | एक बार आश्रम में ग्वाल-बाल फूल तोड़ने के अभिप्राय से आ घुसे और फल-फूल तोड़ने लगे। चण्ड कौशिक ने देखते ही उन्हें ललकारा, किन्तु वे न माने, भीतर आ घुसे । अब की बार चण्ड कौशिक को प्रचण्ड क्रोध आ गया । वह कुल्हाड़ी लेकर मारने दौड़ा। क्रोधावेश में ध्यान न रहने पर वह कुएं में जा गिरा और मर गया ।
प्रचण्ड क्रोध के क्षणों में मृत्यु होने से चण्ड कौशिक
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