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बड़ी यंत्रणाएं दीं, पर भगवान महावीर का आसन न हिला । वह भय और रोष से दूर, अविचल भाव से यंत्रणाओं को सहन करते रहे। आखिर वह दिन भी आया, जब हिंसा अहिंसा के चरणों पर झुकी । लाढ़ के अनार्यों ने भगवान महावीर के अतुल पराक्रम और उनकी भगवत्ता का अनुभव किया । वे साश्रुनयन उनके चरणों पर गिरे और उनसे अपने अपराधों तथा कुकृत्यों के लिए क्षमा मांगने लगे । भगवान महावीर तो क्षमा के अवतार थे । दुराचारियों, अत्याचारियों और अधर्मियों को सच्चे पथ पर लाकर, उन्हें क्षमा देने के लिए ही तो वह घरा-धाम पर आये थे । उन्होंने उन अनार्यों को क्षमादान तो दिया ही, अपितु उन्हें सच्चे मार्ग पर भी लगा दिया ।
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कौशाम्बी के चातुर्मास में भगवान महावीर ने चन्दना का उद्धार करके उसे इतिहास का एक स्वर्णिम पृष्ठ बना दिया । चन्दना के उद्धार और उसके जीवन की कहानी बड़ी ही प्रेरणाप्रद है
चन्दना महाराणी त्रिशला की सगी बहन थी । सबसे छोटी थी । चन्दना और त्रिशला के बीच में एक और बहन थी, मृगावती पर भाग्य का चक्र ही तो है। कर्मों के विपाक के कारण त्रिशलादेवी और मृगावती को तो पुष्पों की शैया प्राप्त हुई, पर बेचारी चन्दना को मिलीं कांटों की झाड़ियां । बड़े दुःख भोगे चन्दना ने यहां तक कि उसे दासी के रूप में नीलाम होना पड़ा। पर धन्य है भगवान महावीर की अनुकम्पा ! उन्होंने एक दिन, उसी निरोह-अपमानिता चन्दना के हाथों से भोजन ग्रहण करके उसके जीवन को वन्दनीय बना दिया ।
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