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________________ चन्दना का आरम्भिक जीवन बड़ा ही गवित था। वह राजकन्या तो थी ही, रूप और सौन्दर्य की छटा उसके मुखमण्डल पर झिलमिलाया करती थी। वह राजभवन की ही नहीं, समूचे नगर की शोभा थी। ___ वसन्त के दिन थे। राजोद्यान पुष्पों से हंस रहा था । पुष्पों पर भोरे मधुर स्वरों में गुंजन कर रहे थे। चन्दना भी उद्यान में घूम-घूमकर गुनगुना रही थी, भौंरों के स्वर में स्वर मिला रही थी। हठात्, एक विद्याधर की दृष्टि चन्दना पर पड़ी। वह बाकाश-मार्ग से उड़ता हुआ जा रहा था। पर चन्दना को देखकर वह रुक गया। चन्दना उसके मन-प्राण में समा गई। वह नीचे उतरा, और चन्दना को लेकर, फिर आकाश-मार्ग से उड़ चला। चन्दना रोयी-चिल्लाई, पर विद्याधर ने उसे न छोड़ा। चन्दना किसी प्रकार अपने शील-धर्म की रक्षा करती रही। पर विद्याधर उसके शील-धर्म को नष्ट करना ही चाहता था। संयोग की बात, कहीं से घूमती-फिरती विद्याधरी आ पहुंची। विद्याधर अब क्या करता? उसने चन्दना को ले जाकर एक भयानक वन में छोड़ दिया। चन्दना उस भयानक वन में इधर-उधर घूमने लगी। चारों बोर हिंसक पशु, अकेली चन्दना! बेचारी भूखी-प्यासी, पर करे तो क्या करे ? आखिर एक भील से उसकी भेंट हुई। मीन चन्दना को देखकर विस्मित हो उठा । ऐसा रूप, ऐसा सौन्दर्य-उसने कभी देखा नहीं था। उसने सोचा, अवश्य
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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