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________________ आठ वर्ष की आयु से ही खान-पान, रहन-सहन, व्यवहार, आचरण-सब में उनकी विरक्ति-भावना परिलक्षित होती थी। वह ज्यों-ज्यों वय की सीढ़ियां लांघते गए, उनकी विरक्तिभावना में भी पंख लगते गए। यौवनावस्था में तो वह पूर्ण रूप से विरक्त बन गए थे। यह सच है कि तीस वर्ष की अवस्था तक वह घरेलू जीवन में रहे, पर यह भी सच है कि वह घरेलू जीवन में भी पूर्ण विरक्त के समान ही रहे। उनके मन में कई बार तूफान उठा कि वह गृहस्थ जीवन के बन्धनों को तोड़कर अपने लक्ष्य की सिद्धि के लिए निकल जाएं, पर किसी-न-किसी कारण उन्हें रुक जाना पड़ता था। आखिर तीस वर्ष की आयु में उन्होंने राज-पाट त्याग कर वीतराग-दीक्षा ले ही ली। वैराग्य की पुष्टि के लिए वह बारह भावनाओं का चिन्तन करने लगे। वे बारह भावनाएं इस प्रकार हैं : अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोघि दुर्लभ और धर्मानुप्रेक्षा। ___ एक जन-कवि ने इन बारह भावनाओं को बड़े ही सरल ढंग से पद्यबद्ध किया है: राजा राणा छत्रपति, हाथिन के असवार । मरना सबको एक दिन, अपनी-अपनी बार ॥ दलबलदेई देवता, मात पिता परिवार। मरती विरियां जीव को, कोई न राखनहार ।।
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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