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गुंजार से आकाश गुंजित हो रहा था। रह-रहकर जय-ध्वनियां उठ रही थीं। राजभवन में रुपये, पैसे, वस्त्र और अनाज ही नहीं, जवाहरात भी लुटाये जा रहे थे । महारानी और महाराजा का हृदय आनन्द और उल्लास का एक दूसरा स्वर्ग बन गया था।"
बाल्यावस्था में भगवान महावीर के 'वर्द्धमान' के अतिरिक्त और भी कई नाम थे। उनकी माता ने उन्हें 'विदेह', 'विछेदित' और 'वंशालिक' आदि नाम दिए थे । 'ज्ञात-पुत्र', 'अतिवीर' और 'निर्ग्रन्थ' आदि नाम भी उन्हें मिले थे। उनका एक और नाम था-'सन्मति'। इस नाम के साथ एक कहानी जुड़ी है, जो बड़ी रोचक और प्राण-प्रेरक है । कहानी इस प्रकार
है
__ भगवान महावीर की अवस्था बहुत ही अल्प थी। एक दिन वह पालने पर लेटे हुए झूला झूल रहे थे । आकाश-मार्ग से दो ऋषि जा रहे थे। उन ऋषियों में एक का नाम संजय और दूसरे कानाम विजय था। उन्हें ऋद्धियां-सिद्धियां प्राप्त थीं। भगवान को पालने पर लेटा हुआ देखकर उनके मन में शंकाएं जाग्रत हो उठीं। वह उनकी परीक्षा के लिए उनके पास जा पहुंचे। किन्तु उनके निकट पहुंचकर जब उन्होंने उनका दिव्य-दर्शन किया तो उनके दर्शन-मात्र से ही उनके मन की शंकाएं दूर हो गईं। उन ऋषियों ने प्रसन्न होकर भगवान को 'सन्मति' नाम से सम्मानित किया।
भगवान महावीर के माता-पिता भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा के अनुयायी थे। अहिंसा, करुणा, दया और संयम