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________________ शीलता आदि महान् गुणों से उनका जीवन आलोकित था। भगवान महावीर का वाल-जीवन इन्हीं महान् गुणों और आदर्शों की छाया में व्यतीत हुआ। यों तो वह स्वयं महान् आदर्शों और गुणों के विधाता थे, पर लौकिक जीवन में भी आरम्भ से ही उन्हें महान् गुणों और आदर्शों की छाया में रहने का सुअवसर प्राप्त हुआ था। इसी का यह परिणाम था कि आठ वर्ष की अवस्था में ही वे निम्नांकित बातों पर अमल करने लगे थे: (क) मैं जीवों पर दया करूंगा। (ख) में सदा सच बोलूंगा। (ग) कभी चोरी नहीं करूंगा। (घ) ब्रह्मचर्य-व्रत का पालन करूंगा। (च) अपनी इच्छाओं को सीमित रखूगा। विश्व के इतिहास में ऐसा बालक कहीं खोजने पर भी न मिलेगा, जिसने अपनी आठ वर्ष की अवस्था में ही जीवों पर दया करने,सच बोलने, चोरी न करने, ब्रह्मचर्य रखने, अपनी इच्छाओं को सीमित रखने की बात सोची हो। उसके सम्बन्ध में इस बात को छोड़कर और क्या कहा जा सकता है कि वह मनुष्य-रूप में साक्षात् परमात्मा है। परमात्मा को छोड़कर बाल्यावस्था में ऐसी अन्तःप्रवृत्ति और किसकी हो सकती है ? जैन-ग्रन्थों में भगवान महावीर के बाल-जीवन की कई ऐसी कहानियां प्राप्त होती हैं, जो उनका देवत्य और भगवत्ता प्रदर्शित करती हैं । इसी कोटि की एक कहानी इस प्रकार है : स्वर्ग में इन्द्र का दरबार लगा था। एक देव बड़े ही सुन्दर
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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