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________________ बालक धरती का श्रृंगार है। इसके प्रताप और यश का गान मनुष्य ही नहीं; सूर्य, चन्द्र और आकाश के नक्षत्र भी करेंगे। इसके द्वारा जगत् में मंगलदायिनी क्रान्ति-होगी वह क्रान्ति जो मनुष्य के दुख-दैन्य को मिटाकर उसे अक्षय सुख-पंथ की ओर ले जाएगी।" भगवान महावीर के जन्म के पूर्व ही महाराज सिद्धार्थ के राज्य की धरती धन-धान्य से पूर्ण हो गई थी। घर-घर में सुखसम्पदा की श्री छा गई थी। वह जब अवतीर्ण हुए, तो उसमें और भी अधिक अभिवृद्धि हुई। ऐसा लगा, जैसे धरती स्वयं अपने कोष को लुटा रही हो, लोगों के घरों को धन-धान्य से भर रही हो। अतः महाराज ने अपने नवजात का नाम रखा-'वर्द्धमान', जो बालक के गुणों के अनुरूप ही था। यश में वृद्धि, धन में वृद्धि, ज्ञान में वृद्धि, पौरुष में वृद्धि और धर्म में वृद्धि--फिर क्यों न बालक का नाम 'वर्द्धमान' पड़े ? कितनी मंगलमय घड़ी रही होगी वह ! निश्चय ही नामकरण संस्कार के समय भी बधाइयां बजी होंगी, मंगल-गीतों से आकाश गुंजित हो गया होगा और दान-दक्षिणा से याचकों की झोलियों को भर दिया गया होगा। एक विद्वान् और भावुक लेखक ने नाम-संस्कारोत्सव का चित्रण इस प्रकार किया है-"अपूर्व उमंग और उल्लास के साथ भगवान का नाम-संस्कार किया गया। उन्हें 'वर्द्धमान' नाम से अलंकृत किया गया। उस समय सारा नगर तोरणों, बन्दनवारों और झालरों से सुसज्जित था। घर-घर से मंगल-गीतों की ध्वनि उठ रही थी। शहनाइयां बज रही थीं। मन्त्रों की
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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