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________________ को अक्षय सुख और शान्ति की मणियों से भर दिया था। इच्छा होती है उस स्थान को मिट्टी में लोट-लोटकर उन चरणों में समा जाऊं, जो अपनी प्रत्येक गति पर, प्रत्येक चिह्न पर सौ-सौ स्वर्ग बनाती थी।" एक कवि ने अपनी श्रद्धा-भावनाओं का चित्रण इस प्रकार किया है कोई देख त्रुटि स्वर्ग-रचना में विधि के, बसाया नया स्वर्ग क्या है चरण में ? भुलाया है स्वर्गेश को क्या शची ने, तुम्हारे खुले नग्न पग के वरण में । जहां लोटने को हृदय चाहता है, चरण चूमने को हृदय चाहता है । वस्तुतः उस स्थान की मिट्टी में रह-रहकर लोटने को मन करता है। इसलिए लोटने को करता है कि उस स्थान में भगवान महावीर का प्राकट्य हुआ था। उन भगवान महावीर का प्राकट्य हुआ था, जिन्होंने अपने हृदय की पवित्रता का आवरण घरती के ऊपर डालकर उसे स्वर्ग के समान सुन्दर और पावन बना दिया था। आइए, अब जरा उस देश और धरा का परिचय प्राप्त करें, जिसकी गोद में भगवान महावीर अवतरित हुए थे। बिहार प्रदेश की अपनी निराली ही छटा है। बिहार प्रदेश के अधिक भू-भाग को देवसरि गंगा अपने पवित्र जल से अभिसिंचित किया करती है। चारों ओर हरित और शस्य-श्यामला धरती की अनुपम छटा दिखाई पड़ती है। सोन और गण्डको के कल-कल
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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