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विनम्रता ने उन्हें प्राणी-मात्र का मित्र बना दिया था। वह भगवत्ता के स्वर्ण-सिंहासन पर आसीन हुए। आज वह हृदयहृदय में अपने इसी रूप में वन्दित किए जाते हैं ।
उन्होंने तप करके अतुल शक्ति प्राप्त की। अपने तप की अतुल शक्ति से आसक्तियों के मोह के पर्दे को चीर डाला। उनका कोई अपना न था, और सब अपने थे। उन्हें किसी से आत्म-रति नहीं थी, और सबसे आत्म-रति थी। वह किसी के प्रेम-पाश में न बंधकर सबके स्नेह-पाश में बंधे हुए थे । विश्व ही उनका घर था, विश्व के समस्त प्राणी ही उनके आने कुटुम्बी थे। वह जो करते थे, विश्व के लिए करते थे, विश्व के समस्त प्राणियों के लिए करते थे। उनके इस व्यापक दृष्टिकोण ने उन्हें परमोज्ज्वल और कीर्तिमान बना दिया था। मनुष्य रूप में उन्होंने जन्म लिया था, पर आज वह अपनी विशिष्टताओं के कारण कोटि-कोटि प्राणियों के पूज्य बन गए।
धन्य थे वह और धन्य था उनका महान व्यक्तित्व !