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________________ किया। आज वह अपने इसी रूप में जन-जन से चचित और अचित किए जाते हैं। महावीर स्वामी अद्वितीय निर्भीक थे। उनके मन में, प्राण में भय का नामोनिशान तक न था। सर्प, बिच्छू, सिंह, बाघ, अस्त्र-शस्त्र आदि जिनसे मनुष्यमात्र कम्पित हो जाता है, महावीर स्वामी के लिए खेल और मनोरंजन के साधन थे। वह सब के बीच में निर्भय घूमते थे-विचरण करते थे। बरा, रोग और दुखों को भी उनकी ललकार थी। जरा, रोग और शारीरिक अवस्थाओं के उस धेरे को, जिसमें फंसकर प्राणी हाहाकार करता रहता है, महावीर स्वामी तोड़कर ही चले और सदा चलते रहे। उन्होंने मृत्यु के द्वार पर भी अपनी विजय का झंडा गाड़ दिया था। वह अविजित थे। जरा, मृत्यु, रोग, मन की स्थितियां, कामनाएं--कोई भी उन्हें अपने बंधन में न बांध सका। उनकी इस अजेयता ने ही उन्हें भगवत्ता के पद पर प्रतिष्ठित कर दिया। आज घरघर में उनका वंदन उनकी अपनी अजेयता के ही कारण होता ___महावीर स्वामी अहिंसा के अवतार थे। उनमें और अहिंसा में सम-सादृश्य था। वह स्वयं अहिंसा थे और अहिंसा स्वयं महावीर स्वामी थी। पर उनकी अहिंसा में आग्रह नहीं था, उद्दण्डता नहीं थी। इसके विपरीत उनकी अहिंसा अभय, और समता के भावों से उल्लसित थी। उसमें दया,प्रेम और विनम्रता को छोड़कर और कुछ नहीं था। उनकी अहिंसा ने बिना किसी भय के बड़े-बड़े हिंसकों को भी बांध लिया था। उनकी
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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