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________________ नाम सुनन्दा और दूसरी का नाम सुमंगला था। उनकी दोनों पत्नियों से दो कन्याएं और सौ पुत्र पैदा हुए थे। पुत्रों में भरत और बाहुबली अधिक बलवान और प्रतापी थे । यह वही भरत हैं, जिनके नाम पर हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा है। भरत ही भारतवर्ष के आदि-सम्राट थे। भगवान ऋषभदेव के सम्बन्ध में उल्लेख मिलता है कि उन्होंने एक सहस्र वर्षों तक कठिन तप करके 'पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया था। भगवान ऋषभदेव ही वह प्रथम महामानव थे, जिन्होंने उच्च कोटि की सामाजिक व्यवस्थाएं स्थापित की। उन्होंने ही सर्वप्रथम कलाओं का निर्माण किया और उन्होंने ही सर्वप्रथम अपनी पुत्री 'ब्राह्मी' को लिपि की शिक्षा दी। आज भी उनकी पुत्री के नाम पर वह लिपि 'ब्राह्मी लिपि' के नाम से विख्यात है। इस प्रकार समाज, राष्ट्र और कुटुम्ब की नींव डालने का श्रेय भगवान ऋषभदेव को ही है। भगवान ऋषभदेव युगपरिवर्तनकारी महामानव थे। प्राणी मात्र के कल्याणार्थ ही उनका आविर्भाव हुआ था। भगवान ऋषभदेव की अभ्यर्थना विभिन्न ग्रन्थों में श्रेयस्कर शब्दों में की गई है। ऋग्वेद में भगवान के 'स्तव' के सम्बन्ध में निम्नांकित पंक्तियां व्यवहृत की गई हैं- "हे ऋषभनाथ, सम्राट्, संसार में जगत्-रक्षक व्रतों का प्रचार करो। तुम्हीं इस अखंड पृथ्वी-मण्डल के सार हो, त्वचा रूप हो, पृथ्वी-तल के भूषण हो, और तुमने ही अपने दिव्य-ज्ञान द्वारा आकाश को नापा है।"
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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