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कि उसे संख्याओं में नहीं प्रकट किया जा सकता। प्रत्येक चक्र में २४ तीर्थंकर प्रकट होते हैं। आजकल अवसर्पिणी-चक्र का युग है। हम लोग उसके पांचवें आरे से होकर आगे बढ़ रहे हैं। इसी चक्र के तीसरे आरे में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का आविर्भाव हुआ था। तीसरे आरे के समाप्त होने में जब तीस वर्ष, आठ मास, पन्द्रह दिन शेष रह गए, वह निर्वाण को प्राप्त हो गए।
तीर्थंकर ऋषभदेव के पश्चात् जब चौथे आरे का युग आया, तो उसमें शेष २३ तीर्थंकरों का आविर्भाव हुआ। भगवान महावीर अन्तिम तीर्थकर थे। तीर्थंकर ऋषभदेव ही इस काल-चक्र में जैन धर्म के आदि-प्रणेता और नीति-निर्माता माने जाते हैं।
तीर्थंकर ऋषभदेव का आविर्भाव कब हुआ, इस सम्बन्ध में कुछ ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता। उनका आविर्भाव चिर-प्राचीन काल में हुआ माना जाता है। जैन-शास्त्रों में उनके आविर्भाव-काल को युगल-काल की संज्ञा दी गई है। क्योंकि उस काल में मनुष्य का पारस्परिक सम्पर्क 'नर' और 'नारी' को छोड़कर और कुछ नहीं था। ___ तीर्थंकर ऋषभदेव के पिता का नाम महाराज नाभि और माता का नाम मरुदेवीथा। भगवान ऋषभदेव की बाल्यावस्था किस प्रकार व्यतीत हुई, उनकी शिक्षा-दीक्षा कहां और किस प्रकार हुई-इस सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ भी कह सकना अत्यन्त दुष्कर है। यह अवश्य कहा जा सकता है कि उनके दो विवाह हुए थे। उनकी दोनों पत्नियों में एक का