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________________ तथा कीर्ति का सम्पादन करता है । जो गुरु की आज्ञा का पालन करता है, उनके पास रहता है, उनके इंगितों तथा प्रकारों को जानता है, वही शिष्य विनीत कहलाता है । जो मनुष्य निष्कपट और सरल होता है, उसी की आत्मा शुद्ध होती है और जिसकी आत्मा शुद्ध होती है, उसी के पास धर्म ठहर सकता है। घी से सींची हुई अग्नि जिस प्रकार पूर्ण प्रकाश को पाती है, उसी प्रकार शुद्ध साधक ही पूर्ण निर्वाण को प्राप्त होता है । संसार में जीवों को इन चार श्रेष्ठ अंगों की प्राप्ति बड़ी कठिन है - मनुष्यत्व, धर्म-श्रवण, श्रद्धा और संयम में पुरुषार्थं । संसारी मनुष्य अपने प्रिय कुटुम्बियों के लिए बुरे से बुरे कर्म भी कर डालता है, पर जब उनके दुष्कर्म भोगने का समय आता है, तब वह अकेला ही दुख भोगता है। कोई भी भाईबन्धु उसका दुख बांटने वाला, सहायता पहुंचाने वाला नहीं होता । तेरा शरीर दिनप्रति दिन जीर्ण होता जा रहा है, सिर के बाल पककर श्वेत होने लगे हैं, शारीरिक और मानसिक सभी प्रकार का बल घटता जा रहा है । हे गौतम, क्षणमात्र भी प्रमाद न कर । जैसे ओस की बूंद तृण की नोक पर थोड़ी ही देर तक रहती है, वैसे ही मनुष्यों का जीवन भी बहुत अल्प है, शीघ्र ही नष्ट हो जानेवाला है । इसलिए हे गौतम, क्षणमात्र भी प्रमाद न कर । १३९
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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