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________________ अहिंसा को सर्वोच्च सीढ़ी तक पहुंच जाता है। ___ गृहस्थ कुछ भिक्षुओं से अच्छे होते हैं, क्योंकि उनमें ऊंचे दर्जे का संयम होता है, अहिंसा होती है। जिस भिक्षु में उच्च कोटि का संयम होता है, पूर्ण विकसित अहिंसा होती है, वह सभी गृहस्थों से अच्छा हो सकता है। आत्मा को प्राप्ति न गांव में होती है, न वन में। यदि आत्मा स्वयं अपने को देखनेवाला बने तो आत्मा की प्राप्ति वन और गांव दोनों में कहीं भी हो सकती है। आत्मा अकेला है। वह अपने आप में पूर्ण है। आत्मा को परमात्मा के रूप में परिवर्तित करने की जो प्रक्रिया है, वही धर्म है। सम्प्रदाय, चिह्न, वेश, बाह्य आचारविचार, कर्मकाण्ड आदि धर्म के साधन कहे जा सकते हैं, पर धर्म नहीं। तू ही तेरा मित्र है । बाहर तू किसे खोजता है ? मित्र वह है जो दुखों के बन्धन से छुड़ाए, कल्याण करे। सुख-दुख अपना ही बनाया हुआ होता है । स्वर्ग और नरक मनुष्य के अपने ही हाथ में हैं । अच्छा कर्म अच्छा फल देता है और बुरा कर्म बुरा फल। मनुष्य अपनी ही प्रेरणा से कर्म करता है और अपनी ही प्रेरणा से उसका फल भोगता है। ___ संसार में बहुत से चर और स्थावर प्राणी बड़े ही सूक्ष्म होते हैं, वे रात्रि में देखे नहीं जा सकते। तब रात्रि में भोजन कैसे किया जा सकता है ? ____ धर्म का मूल विनय है और मोक्ष उसका अन्तिम रस है। विनय से मनुष्य बहुत शीघ्र श्लाघा-युक्त सम्पूर्ण शास्त्र-ज्ञान १३८
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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