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१. पदार्थ सचेतन हो या अचेतन, अल्प हो या बहुतदांत कुरेदने की सींक के बराबर भी जिस गृहस्थ के अधिकार में हो, उसकी आज्ञा लिए बिना पूर्ण-संयम साधक न तो स्वयं ग्रहण करते हैं, न दूसरों को ग्रहण करने के लिए प्रेरित करते
२. सचाई के साथ वस्तु का मूल्य लेने और सचाई के साथ वस्तुओं को तोलकर देने से व्यापार में अभिवृद्धि होती है।
३. बुरे आचरणों से धन पैदा मत करो; क्योंकि बुरे आचरणों और चोरी से पैदा किया हुआ धन मूल-धन को भी नष्ट कर देता है।
४. मैं उसी धन को अपना धन समझता हूं, जिसे मैंने अपने परिश्रम से पैदा किया है।
५. उत्कोच लेकर सच्चे को असत्य प्रमाणित करने से मनुष्य अपने जीवन में अनेक कठिन-से-कठिन दुःखों से आग्रस्त रहता है।
ब्रह्मचर्य ब्रह्मचर्य चतुर्थ व्रत है। ब्रह्मचर्य क्या है-यह एक विकट प्रश्न है। आचार्यों ने ब्रह्मचर्य के अर्थ की व्याख्या इस प्रकार की है-'पुरुष के लिए अष्ट प्रकार का मंथुन न करना, अर्थात् कुभाव से किसी स्त्री का दर्शन, भाषण, स्पर्श, स्मरण, श्रवण, उसके साथ एकान्तवास, हंसी, दिल्लगी और सहवास आदि का सम्बन्ध न रखना ब्रह्मचर्य कहलाता है।' एक बहुत बड़े विद्वान् ने ब्रह्मचर्य के अर्थ पर प्रकाश डालते हुए लिखा है- 'ब्रह्मचर्य
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