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________________ वह साधना है, जिससे मनुष्य के शरीर के वीर्य-तेज की रक्षा होती है। एक दूसरे विद्वान् ने ब्रह्मचर्य की परिभाषा इस प्रकार को है- 'ब्रह्मचर्य उस वीर्य-शक्ति को संयमित रूप से धारण करने को कहते हैं जिससे मृत्यु का क्षय होता है और जीवनशक्ति बढ़ती है।' विश्व के सभी धर्मग्रन्थों और विचारकों ने मुक्त-कंठ से ब्रह्मचर्य के महत्त्व को स्वीकार किया है। वेदों में ब्रह्मचारी को ब्रह्मा से भी श्रेष्ठ पद प्रदान किया गया है । 'हरिवंशपुराण' का उल्लेख है- 'ब्रह्मचर्य में ही धर्म और तप की प्रतिष्ठा है।' स्मृतियों का कथन है-'ब्रह्मचर्य से तेज वायु, बल प्रज्ञा, लक्ष्मी, विशाल यश, परम पुण्य तथा भगवत्कृपा-प्रसाद, प्रीति की प्राप्ति होती है। शास्त्रों ने स्पष्ट रूप से ब्रह्मचर्य की महत्ता की घोषणा की है-'वीर्यपात से मृत्यु और वीर्य-धारण से जीवन है। अतएव प्रयत्नपूर्वक वीर्यरक्षा करनी चाहिए।' आयुर्वेद में ब्रह्मचर्य को ही स्वास्थ्य और आत्मा के विकास का मूल कारण कहा गया है । एक स्थान पर कहा गया है-'भोजन, नींद और ब्रह्मचर्य ही स्वास्थ्य के विकास के कारण हैं।' एक दूसरे स्थान पर ब्रह्मचर्य की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है'ब्रह्मचर्य रूप तप से ही देवों ने मृत्यु पर विजय प्राप्त की है।' महात्मा गांधी ने भी ब्रह्मचर्य को आरोग्य की कुंजी के रूप में स्वीकार किया है। भगवान महावीर ने गृहस्थ और साघु-दोनों के लिए ब्रह्मचर्य-व्रत का पालन अधिक आवश्यक बताया है। गृहस्थ लौकिक कार्यों में रत रहता हुआ अपनी आत्मा का विकास १२६
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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