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लिए सुरक्षित स्थान खोजने लगे। तुम भी प्राण- भय से भाग खड़े हुए और एक सुरक्षित स्थान में पहुंचकर खड़े हो गए । वहां और भी बहुत से पशु एकत्र थे । यद्यपि उनमें परस्पर एकदूसरे के विरोधी और शत्रु थे, पर उस समय वे बैर-विरोध को बिलकुल भूल गए थे, क्योंकि उस समय सबको अपने-अपने प्राण बचाने की पड़ी थी ।
"तुम भी उस सुरक्षित स्थान में पहुंचकर एक ओर खड़े हो गए । वन के छोटे-छोटे पशुओं ने तुम्हारे विशाल शरीर की ओर देखा और तुमने उनके उस लघुकाय की ओर देखा, जो हिमालय के समक्ष एक ढूह-सा दिखाई पड़ रहा था । पर कोई किसी से कुछ न बोला, न वे तुम्हें देखकर भयभीत हुए और न तुम्हारे मन में अहंकार ही पैदा हुआ; क्योंकि उस समय सबकी एक ही स्थिति थी । सहसा तुम्हारे एक पैर में खाज पैदा हो उठी और तुम झुककर दूसरे पैर को खुजलाने लगे । जब खुजला चुके, तो फिर उठे हुए पैर को धरती पर रखने लगे । पर यह क्या ? वहां तो खरगोश का एक छोटा-सा बच्चा विद्यमान है। यदि तुम पैर रख देते तो निश्चय था कि उस निरीह खरगोश - शिशु का प्राणान्त हो जाता । वह कांप रहा था, भयभीत - दृष्टि से इधर-उधर देख रहा था। उसे देखकर तुम्हारे हृदय में दया पैदा हो उठी। फिर तुम अपने पैर को धरती पर न रख सके, पैर को उठाए तीन पैरों पर ही खड़े रहे । तुम उस समय तक तीन पैरों पर खड़े रहे, जब तक कि दावाग्नि पूर्णरूप में शान्त नहीं हो गई । दावाग्नि शान्त होने पर जब वन के जीव-जन्तुओं के साथ खरगोश का वह बच्चा भी चला गया,
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