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________________ तब तुमने अपने पैर को धरती पर रखा। देर तक तीन पैरों से खड़े रहने के कारण तुम्हारे अंग जकड़ उठे थे। सारे शरीर में पीड़ा उठ रही थी। तुम गिर पड़े और कभी न टूटने वाली नींद में सो गए। _ 'पर तुम पशु-योनि से मुक्त हो गए । पशु-योनि में खरगोश शिशु के प्रति कष्ट उठाकर दया प्रकट करने के ही कारण तुम्हें यह मानव-जन्म प्राप्त हुआ है। मानव-शरीर में भी तुम्हें राजकुमार का पद प्राप्त हुआ और तुम्हारे हृदय में उज्ज्वल भावनाओं का उदय हुआ। फिर अब तुम क्यों पीछे की ओर लौट रहे हो? पशु-योनि में तो तुमने समभाव प्रदर्शित किया, खरगोश-शिशु के प्रति दया प्रदर्शित करके महान सुख के भागी बने, फिर इस मानव-जन्म में तुम क्यों समभाव को छोड़ रहे हो? तुम्हारा नाम मेघ है। जिस प्रकार मेघ सब पर समानरूप से कृपा करते हैं, उसी प्रकार तुम्हें भी सबको समान समझना चाहिए। इस जगत् में न कोई छोटा है, न बड़ा है। छोटा, बड़ा, नीच, ऊंच-सब अपने-अपने कर्मों से ही बनते भगवान महावीर की उक्त वाणी से मेघकुमार के हृदय की मलिनता दूर हो गई। उनके हृदय में दिव्य-ज्ञान की ज्योति झिलमिला उठी। वह दृढ़ निश्चय के साथ भगवान के चरणों पर झुक पड़े। भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया, अपने अमृततुल्य हाथों से उठाया। भगवान महावीर के कर-स्पर्श से मेघकुमार गौरवान्वित हो उठे। इतने गौरवान्वित कि आज भी लोग उनकी गाथा का स्मरण 'पावन' के रूप में ही करते हैं। १०४
SR No.010149
Book TitleAntim Tirthankar Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShakun Prakashan Delhi
PublisherShakun Prakashan Delhi
Publication Year1972
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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