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एक दूसरी छोटी-सी और साधारण बात को ले ले । किसी एक मकान मे दीवारे सफेद रंग की है। उसमे हरे रंग के बिजली के लट्ट लगाये गये हैं । ग्रव जब बिजली का प्रकाश दीवारो पर पडता है तव हमे दीवारे सफेद के बदले हरे रंग की प्रतीत होती है ।
रात और दिन के समय यदि दो भिन्न-भिन्न व्यक्तियो द्वारा इन्ही दीवारो को देखने के पश्चात् उनकी राय पूछी जाय तो दीवारो के रंग के बारे मे उनमे मतभेद अवश्य उपस्थित होगा । एक का यह कहना होगा कि दीवारे सफेद रंग की हैं जब कि दूसरा कहेगा कि वे सफेद नही बल्कि हरे रंग की हैं । इन दोनो की बात सही भी है और गलत भी । इस वात का फैसला तो तब हो सकता है जब कि यह भेद जानने वाले किसी तीसरी व्यक्ति की राय पछी जाय जो इसी मकान मे रहता हो । इन दोनो की बाते आपस मे विरोधी होते हुए भी दिन और रात की अपेक्षा से सही है । इस वात का ज्ञान तो तब होगा जब कि ये दोनो व्यक्ति दिन और रात दोनो समय इन्ही दीवारो को फिर से देखें । तब तक यदि ये दोनो व्यक्ति अपनी-अपनी मान्यता पर ग्रडे रहे तो उसमे श्राञ्चर्य की कौन-सी बात है ?
आँखो से जो दिखाई देता है उसकी बात ले ।
एक पहाड़ की चोटी पर चार व्यक्ति खडे है । एक व्यक्ति की आँख मे मोतिया है और उसने ऐनक नहीं लगायी है । दूसरे की आँखे मे भी मोतिया है लेकिन उसने ऐनक लगायी है । तीसरे की आँख सव प्रकार के रोगो से मुक्त है ।