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________________ ४११ किया गया है । अतिम चार वाक्यो में इस प्रकार किये गये नमस्कार का फल तथा प्रभाव वर्णित है । फल और प्रभाव वताने वाले इन चार पदो को नमस्कार महामन्त्र के अन्तर्गत ही माना गया है। हमने जो नौ पद अभी पढे, उनका सीधा-सादा और सरल अर्थ निम्नानुसार होता है : १ अरिहत (भगवान्) को नमस्कार करता हूँ। २ सिद्ध ( परमात्मा ) को नमस्कार करता हूँ। ३ आचार्य ( भगवत ) को नमस्कार करता हूँ। ४ उपाध्याय (महाराज को नमस्कार करता हूँ। ५ लोक मे रहे हुए सर्व साधु महाराजो को नमस्कार __ करता हूँ। ६ इन पाचो को किया हुआ नमस्कार ७ सर्व पापो को नाश करने वाला है । ८ और सर्व मगलो मे ६ प्रथम (उत्कृष्ट) मगल है। सीधा-सादा दिखाई देने वाला यह मत्राधिराज कितना अर्थगम्भीर है-इस बात का शीघ्र ही खयाल आ जाना सभव नहीं है। फिर भी इसमे रही हुई गहन और गूढ अर्थगभीरता के विषय मे विचार करने से पहले म यह देखेंगे कि जिन्होने इस महामन का अशत स्वाद अनुभव किया है वे लोग इस विषय मे क्या कहते है । प्रारभ श्रद्धा से करना । इस श्रद्धा को वाद मे बुद्धिगम्यता से अल कृत करेगे। __ "यह नवकार मत्र सभी शास्त्रो का सार रूप है । यह मत्र अचित्य प्रभावशाली है। इसका प्रभाव न केवल मनुष्यो
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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