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श्रद्धा इस विचारधारा की पृष्टभूमि है। इससे अन्ततोगत्वा मानवजाति का भयानक हित ही होने वाला है ।
यह बात बहुत ध्यान देने योग्य है । आज का जीवनस्तर श्रत्यन्त खर्चीला बन गया है । सादगी का स्थान ठाटवाट ने ले लिया है । नम्रता का स्थान ग्रहता ने लिया है, विवेक के स्थान पर बडप्पन और ग्राडम्बर ग्रा वैठे है । सब को और और अधिक की जरूरत है । इस 'अधिक' के पीछे दूसरो से विशेष ' का भाव छिपा हुआ है । फलत स्वार्थ केवल स्वार्थ-के सिवा दूसरा कुछ नही दिखाई देता । आज अपरिग्रह की विश्व-कल्याणकारी भावना की छाया भी नही दिखाई देती । यह सब हमे कहाँ ले जाएगा
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शोषको की हिसा के विरुद्ध साम्यवादियो की हिसा आई । हिसा तो वनी ही रही । हिंसा से हिसा का नाश कभी नही हो सकेगा, फिर चाहे वह साम्यवाद - छाप हिसा या लोकशासन छाप हिसा । हिसा से हिंसा नही मिटती, हिंसा से दुख खत्म नही होता, हिसा से सुख प्रकट हो हो नही सकता । यह तो एक बडा विपचक (Vicious circle ) है । अपरिग्रह का प्रभाव इसके मूल मे है ।
मानव जाति सुख और शान्ति चाहती है । इसका असली और सफल उपाय अपरिग्रह के पालन तथा सादगी मे सन्तोष मानने मे है । विश्व के इतिहास मे जो अनेक युद्ध हुए है उनके मूल मे परिग्रह की लालसा ही रही है ।
दुनियाँ को आज - सर्वदा - शान्ति चाहिए। शान्ति की स्थापना और उसकी रक्षा का सही उपाय क्या है ? सैनिक बल ?