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यदि युद्ध
से शान्ति और सुख प्राप्त
प्रथम युद्ध के बाद युद्धों को परपरा भयकर बनाने के लिए उपस्थित न
नही, नही, नही
होते हो तो विश्व के इतिहास के पृष्ठो को
होती ।
आज जो परिस्थिति है वह तो वहती हुई स्थिति है | सभवत रूस, अमेरिका तथा अन्य देशो के एकत्र किये हुए सहार के साधन काम मे जाएँगे। एक महा विनाश की सृष्टि कर जाएँगे । उसके वाद ?
बाद में क्या होगा ? यह वात यदि आज ही समझ मे ग्राजाय तो मानव-जाति महाविनाश से बच जाय । यदि न समझा गया तो ऐसे विनाश की परम्परा जारी रहेगी । वैर से वेर शान्त नही होता । असत्याचरण से शान्ति स्थापित नही हो सकती । चोरी से सस्कार नहीं वनाये जा सकते । ब्रह्मचर्य से कभी सन्तोष होता ही नही । परिग्रह से कभी सुख नही मिलता । हिसा से कभी हिसा शान्त नही होती ।
आज विश्व मे चारो ओर दृष्टि डाले तो हृदय में एक आघातजनक करुरण भाव पैदा होता है । विचार आता है कि कही हम किसी वडे पागलखाने मे तो नही वस रहे हैं ?
किसी स्थान पर ग्राग लगने पर उसे बुझाने के लिए हम पानी लेकर दौडते है । इसके वदले यदि हम घासलेट, पेट्रोल, पटाखे, तथा अन्य स्फोटक पदार्थ लेकर दौडे तो नतीजा क्या हो
?
आज दुनियाँ में कुछ ऐसा ही हो रहा है । श्राज की राजनीति तथा अर्थनीति युद्ध को रोकने के लिए युद्ध के घोर विनाशक शस्त्र बनाने के पीछे दौड़ रही है -- श्राखे मूंद कर