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आचार का अशत पालन अवश्य होता है |
अपरिग्रह के विषय मे जैन शास्त्रकारो ने जो कहा है वह बहुत ही ध्यान देने योग्य है । आज इस भौतिक जगत् में हमारे चारो ओर जो सामाजिक तथा राजनैतिक दुर्दशा दिखाई पडती है उसके लिये इस (अपरिग्रह के ) आचार का अभाव भी जिम्मेदार है ।
धनवान तथा गरीब वर्ग के बीच करुण असमानता और धनवानो एव सत्ताधारियो की शोषरणनीति देखकर कार्ल मार्क्स नामक जर्मन विचारक ने एक नये प्रकार का अर्थशास्त्र लिखा । उसमे से प्रेरणा प्राप्त कर लेनिन ने रूस मे एक जबरदस्त क्रान्ति उपस्थिति की । उसमे से साम्यवाद तथा समाजवाद के नाम से परिचित विचारधाराओ का उद्भव हुआ | उसमे से रक्तमय ( हिंसक ) क्रान्तियाँ हुई ।
कार्ल मार्क्स तथा उसके समान अन्य विचारको को ऐसे विचार क्यो सूझे ? हजारो-लाखो वर्षो पहले जैन समाज - शास्त्रियो ने अपरिग्रह का जो अर्थशास्त्र बनाया था यदि विश्व भर में उसका पालन हुआ होता तो द्वेष, विद्वेप, तिरस्कार, मारकाट, और व्यापक हत्या से पूर्ण घटनाएँ विश्व मे न होती । विना हक के जो छीन कर लिया गया था और संग्रह किया गया था वह उसी प्रकार छिन गया । वहाँ कर्मसिद्धान्त अपना काम तो कर गया । परन्तु कार्ल मार्क्स, लेनिन, स्टेलिन, चाऊ एन लाइ, आदि साम्यवादियों द्वारा अपनाई गई विचारधाराएँ तथा कार्यप्रणालियाँ भी विघातक ही है, क्योकि इनके पीछे अहिसा की कोई भावना नही है । खूब हिंसा और द्वेष की मात्रा तथा परमात्मा एव धर्म मे