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कपायो का उदय होने से उसमे शिथिलता ग्राजाती है और याडे या उलटे रास्ते चलकर पुन: वह 'मिथ्यात्व' दशा की ओर गिरने लगता है । यह दूसरा गुणस्थानक बहुत ही अस्थिर होने के कारण ऊपर से गिरने पर यहाँ रुकने की प्रक्रिया अधिक देर टिक नही सकती - इस स्तर पर पतन अवस्था इतनी तेज गति से चलती है । परन्तु एक बार श्रात्मा को सम्यग्दृष्टि प्राप्त होने के कारण उसके पुन जागत होने मे कोई सदेह नही है |
इस गुणस्थानक को यदि हम 'श्रवनतसदन' कहे तो भी ठीक ही होगा । पुन ग्रागे बढने का मार्ग सम्यग् दृष्टि जाग्रत करना है, परन्तु वह यहाँ की पतन अवस्था मे सभव नही है । वह तो अल्पकाल में हो मिथ्या भाव मे अर्थात् प्रथम गुरणस्थानक पर जा गिरता है । अब वहाँ यदि मिथ्या भाव को दबा सके तो प्रयत्नजाग्रति पूर्वक उसकी गाडी यह दूसरा जंक्शन लिये विना ही आगे वढ जाती है । और यदि न दबा सके, और मिथ्या भाव सहित तीव्र रागद्वेष मे भटक जाय तो वह प्रथम गुणस्थानक पर ही मग्न बना रहता है ।
३ मिश्र गुणस्थानक
यह अवस्था प्रथम दो गुणस्थानको से बढ कर होते हुए भो बडी विचित्र अवस्था है । यह ग्रात्मा के विकासक्रम की मिथ्यात्व और सम्यक्त्व के वीच तो हुई मिश्र अवस्था है । एक मासाहारी मनुष्य मासाहार का त्याग करके शाकाहारी बनता है । इसके पश्चात् वह एक ऐसे भोजनगृह में जाता है जहाँ दोनो तरह का भोजन बनाया और परोसा जाता है । उस समय उसकी पुरानी रुचि जाग्रत होती है । उसका मन