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जिनके त्वचा और जीभ, ये दो इन्द्रियाँ हो वे 'हीन्द्रिय
जीव '
,
जिनके त्वचा, जीभ, और नाक हो वे त्रीन्द्रिय जीव, जिनके त्वचा, जीभ, नाक और आँख हो वे 'चतुरिन्द्रिय'
जीव,
जिनके त्वचा, जीभ, नाक, आँख और कान हो वे पचेन्द्रिय जीव ।
पचेन्द्रिय जीवो के चार प्रकार बतलाए गये है
(१) मनुष्य, (२) तिर्यच, अर्थात् पशु-पक्षी श्रादि (३) देवलोक मे बसनेवाले देवता श्रीर ( ४ ) नरकभूमि मे रहने वाले नारकीय जीव ।
जीव के लिए 'आत्मा' शब्द का प्रयोग होता है । जो जीता था, जोता है, जिएगा सो जीव । 'अतति' - भिन्न-भिन्न गतियो मे गमन करे सो 'आत्मा' । चैतन्य ज्ञान दर्शन, का स्फुरण जिसमे हो वह चेतन । जीव कहिये, चेतन कहिये, या आत्मा कहिये, मूल स्वरूप मे ये सब एक ही द्रव्य के लग अलग सज्ञावाचक नाम है ।
हम 'परिचय' प्रकरण में इस जगत के आधारभूत जिन छ द्रव्यों का वर्णन कर आये है, उनमे से जीव - यह एक द्रव्य - (Substance) चैतन्यशाली (Living Substance) है।
यह स्थावर तथा त्रस कहलाने वाले ससारी अर्थात् कर्मबद्ध जीवो का वर्णन हुआ। मुक्त जीवो का वर्णन अन्तिम मोक्ष तत्त्व के अन्तर्गत किया जायगा ।
२) अजीब
'जड' कहलाने वाले उन सव पदार्थों का समावेश 'प्रजीव