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जैन दार्शनिको ने प्रात्मा के मुख्य दो भेद कहे है - १-ससारी २--मुक्त
'ससारी' आत्मा अर्थात् कर्म के पुद्गलो से बँध कर इस संसार मे ससरण-परिभ्रमण करने वाले आत्मा। मुक्त अर्थात् सभी कर्मो का क्षय करके जो मुक्त हो गये है, मोक्ष मे गये है, वे आत्मा।
ससार मे परिभ्रमण करते हुए कर्मबद्ध आत्मायो के मुख्य दो भेद है, एक 'स्थावर' और दूसरे 'त्रस ।'
जो जीव अपने आप गति नहीं कर सकते, जिन्हे नियत-- आयुष्यकाल तक स्थिर रहना पड़ता है, और जो सुखप्राप्ति के या दु खनिवारण के प्रयत्न नही कर सकते, उन्हे 'स्थावर' जीव कहते है। इस विभाग में 'पृथ्वीकाय' वनस्पतिकाय, वायुकाय, जलकाय तथा तेजस्काय' जीवो का समावेश होता है।
इन स्थावर जीवो के पुन दो प्रकार है, सूक्ष्म तथा स्थूल । स्थूल जीवो के लिए जैन पारिभाषिक नाम 'बादर जीव' है। इनमे से सूक्ष्म जीव अगणित एकत्रित हो तो भी चर्मचक्षुप्रो से दिखाई नहीं देते । वादर अथवा स्थूल जीवो को हम नङ्गी
आँखो से देख सकते है । ये सब जीव केवल स्पर्गन-इन्द्रिय के द्वारा ही सवेदनो का अनुभव करने वाले एकेन्द्रिय जीव है। इसके सिवा उनके और कोई इन्द्रिय नही है। ____ जो जीव स्वेच्छापूर्वक चल फिर सकते है, उन्हे 'त्रसजीव' कहते है । दो, तीन, चार और पाँच इन्द्रियो वाले सभी जीवो का इनमे समावेश होता है।