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४ पाप ५ पासव ६ सवर ७ बन्ध ८ निर्जरा है मोम
इन नवो तत्त्वो का आत्मा के साथ सीवा सम्बन्ध होने के कारण आत्मा तथा उसके विकासक्रम को समझने में इन नौ तत्त्वो की विवेचना हमारे सम्मुख एक नयी दुनिया प्रस्तुत करेगी । अब म इन नी तत्त्वो की क्रमग परीक्षा करेगे।
१ जीव -
पहले हम निगोद तथा निगोद मे वसते हुए जीवो के विषय में कह आये हैं । उस तथ्य को लक्ष्य मे लेते हुए यह वात तो स्वीकृत हो चुकी है कि इस विश्व में अनादिकाल से अगनित असख्य, अनन्त जीवो का अस्तित्व है। यहाँ हमें निगोद से वाहर निकल कर इस समार मे परिभ्रमण करने वाले जीवो के विपय मे विचार करना है।
जीव अर्थात् जिसमे चैतन्य है-ऐसा आत्मा। जैन तत्त्ववेत्तानो ने आत्मा के आठ मूल स्वरूप बताये है। वे पाठ स्वरूप निम्नलिखित है
(१) द्रव्य-यात्मा, (२) कपाय-यात्मा, (३) योग-यात्मा (४) उपयोग-यात्मा, (५) जान-प्रात्मा, (६) दर्शन-यात्मा (७) चारित्र-आत्मा (८) वीर्य-प्रात्मा ।
आत्मा के इन आठ स्वरूपो मे से दो 'हेय', दो ‘उपादेय', तथा चार 'ज्ञेय' स्वरूप माने जाते है ।