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वाहर विश्व मे जैन धर्म और जेन तत्त्वज्ञान के बारे मे जो अज्ञान फैला हुआ है उसे देखकर मेरे मन मे वडी ग्लानि पैदा हुई और उस ग्लानि को मन मे ही समाये भारत वापस लौट आया। इस घटना को हए अाज कई वर्ष बोत गये है।
स्वदेश लौटने के बाद जब मैने यह देखा कि हमारे भारतवर्ष मे भी जैन तत्त्वज्ञान के बारे में अज्ञान फैला हुआ है तब मेरे पाश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा। इसमे भी अधिक
आश्चर्य की बात तो यह है कि स्वय जैन समुदाय मे इस तत्त्वज्ञान की जानकारी वहुत कम है। जव मैने यह कहा कि जैन धर्म ईश्वर को कर्ता के रूप में मानने के लिये तैयार नहीं तव मैंने कुछ ऐसे जैन भाइयो को देखा जिन्होने मेरी इस वात पर हँसी उडायी और मुझे नास्तिक कहा । यह देखकर मेरे दिल को गहरी चोट पहुंची।
मुझे अपनी ही अल्पता से परिचित होने का जव अवसर मिला तव मैने सबसे अधिक दुख, आश्चर्य और आघात का अनुभव किया।
बहुतसी जगहो पर मैं जैन धर्म और जैन तत्त्वज्ञान के बारे मे लम्बी चौडी बाते किया करता था। 'अन्धो मे काना राजा' या 'निरस्तपादपे देशे एरण्डोऽपि द्रुमायते' वाली कहावत के अनुसार, जैन तत्त्वज्ञान की बाते जगह जगह कह कर मैने लोगो को चकित कर दिया था। मुझे यह विश्वास हो गया