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३०२ कर्म के पुद्गलो की समग्र सृष्टि प्रति अति अति गहन गूढ और विराट है। इसका सपूर्ण सर्वदर्शी नीर प्रत्यक्षनान तो आत्मा को तभी होता है जब उसका ज्ञान गुण खिलता है, पूर्ण कलाओ से खिलता है, केवलज्ञान प्राप्त होता है। परन्तु परोक्षत इसका मनोगत जानकारी प्राप्त करनी हो तो इस ज्ञान का विपुल भण्डार जैन गावकारो के पास है । उसकी जानकारी मिल सकती है। ___ जैसे हम दुनियाँ मे रोग, विप, वाघ, भेडिये, सर्प, छलकपट, खजर, तलवार, पिस्तोल, मशीनगन और बम प्रादि से डर कर, सम्हल कर चलते है, उसी तरह कर्म के पुद्गलो से भी चेत कर चलना चाहिए। आत्मा के लिए पाप कर्म के पुद्गलो मे जो भयानकता है, वैसी दुखदायकता तो अन्य किसी वस्तु मे नही है।
परन्तु कर्मो से निराश होने की भी आवश्यकता नहीं है। जैन दार्गनिको ने इन से छूटने और वचने का राजमार्गRight Royal Highway-समस्त ससार के सम्मुख खोल ही रखा है। इस मार्ग को समझने का तत्त्वविज्ञान 'अनेकान्तवाद' है, पद्धति 'स्याद्वाद' है और पाचरण करने के लिए सम्यग् दर्गन ( Right vision ) सम्यक् ज्ञान ( Right Knowledge ) और सम्यक् चारित्र ( Right conduct ) रूप धर्म है। ____ कर्म के विषय मे इतना समझने के बाद हमे एक नई वात भी समझ मे पाएगी । यह कर्म रूपी क्रिया द्विपक्षी है। एक मोर आत्मा अर्थात् हम क्रिया करते हैं, उसी समय दूसरी ओर कर्म के पुद्गल भी जुडने और अलग होने की क्रिया करते होते है । इसका अर्थ यह हुना कि हमारी और कर्म के पुद्गलो