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निश्चित न कर ले कि यह ज्ञान प्राप्त करने का मार्ग हमें अभीष्ट ध्येय तक पहुँचा सकेगा या नहीं, तथा यह ज्ञान मच्चा है या भूठा, तव तक हम एक कदम भी नही उठा सकते । परन्तु यह निश्चित करने का कार्य सरल नहीं है, अत्यन्त कठिन है। ___ जहाँ निगाह टाले वही लोग ज्ञान की दुकान लगा कर वैठे दिखाई देते है । सब जगह ऐसे वोई लटकते हा दियाई देते है, कि “यहाँ पाइए, हमारे पान ही सच्चा ज्ञान है, और सब जगह भूठा है।" कहाँ जायें ? किसके पास जाय ? ___अपर बताई गई परिस्थितियों के कारण ही 'सुदेव, मुगुरु
और 'सुधर्म' ये तीन गब्द आवश्यक बने हैं। ___कोट सिलाने के लिये हम 'अच्छा दर्जी' खोजते हैं। परन्तु यदि कपडा अच्छी किस्म का न हो तो 'अच्छा दर्जी' कहाँ तक मदद कर सकता है ? यदि हम टाट का टुकडा लेकर दर्जी के पास जायें और उसने कहे कि 'कोट मी दो' तो वह क्या जबाव देगा? इसी तरह यदि हम बटिया कपडा लेकर किसी मोची के पास जाकर कहे कि 'कोट वना दो' तो क्या होगा?
इससे यह सिद्ध होता है कि यदि हम अपनी जिनामावृत्ति को निर्मल, अहभाव-रहित न बनावे तो देव गुरु, धर्म हमारी कितनी सहायता कर सकेगे ? खास कर जव कि जगह जगह पर ऐसे वोर्ड पढने को मिलते है कि, “सुदेव, सुगुरु योर मुधर्म केवल हमारे ही पास हैं" तव इनमे 'सु' कौन और 'कु' कीन, यह कैसे निश्चय किया जाय ? ___एक लोकोक्ति है कि "खुशामद खुदा को भी प्यारी है।" मनुष्य की सारी तेजस्विता खुशामद के आगे गौण वन जाती है। जो लोग हमसे वार वार कहते है कि 'आप बहुत भले