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gy आदमी है उन्हे हम भले मानते है । हमारी प्रशसा करने वाले हमे अच्छे लगते है । उसी तरह 'आप धर्म प्रिय है' आप धर्मानुरागी है, आप मे उच्च कोटि की योग्यता है ऐसा कहने वाले गुरु भी हमे पसन्द आ जाते है । और तब ये गुरु हमे जो मार्ग बताते है, वह मार्ग भी हमे अच्छा और सच्चा प्रतीत होता है। ___ इस बात पर से यह शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए कि हमे खुशामद प्रियता और अहभाव छोड़ कर ही सुदेव, सुगुरु, सुधर्म तथा सच्चे (सम्यक्) ज्ञान की खोज में निकलना चाहिए। ___ यदि हम स्यावाद सिद्धान्त से सुसज्जित अनेकातवाद को समझने का प्रयत्न करेगे तो हमे यह समझने मे बडी सहायता मिलेगी कि सच्चा ज्ञान क्या है और उसे प्राप्त करने का सही मार्ग कौनसा है । ज्ञान के विषय मे यह तत्त्वज्ञान क्या कहता है सो देखे .
जैन तत्त्ववेत्तानो ने ज्ञान को दो विभागो मे वॉटा है - (१) सम्यक् (अर्थात् सच्चा) ज्ञान । (२) मिथ्या (अर्थात् झूठा) ज्ञान । उन्होने सम्यक् ज्ञान के पॉच भेद वताये है(१) मतिनान (२) श्रुतज्ञान (३) अवधिज्ञान (४) मन पर्यवज्ञान (५) केवलज्ञान मिथ्या ज्ञान के उन्होने तीन भेद बताये है -