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इस तरह इस दुनियाँ मे कुछ भी प्राप्त करना हो, सिद्ध करना हो, फिर चाहे वह आध्यात्मिक क्षेत्र मे हो चाहे भौतिक क्षेत्र मे, ज्ञान और क्रिया के सयोग के विना कुछ नही वन सकता। 'ज्ञान क्रियाभ्याम्' यह एक दिव्य सूत्र (Heavenly Slogan) है। इसके पीछे प्राप्त करने योग कोई भी दूसरा गब्द रख सकते है । दूसरे गन्द रखने के लिए केवल इतनो ही गर्त है कि वह शब्द प्राप्त करने के पदार्थ का या हेतु का सूचक (Objective) होना चाहिए । 'नान और क्रिया के द्वारा पर्वतारोहण' ऐसा हम कह सकते है, 'ज्ञान और क्रिया के द्वारा पर्वत' ऐसा नही कहा जा सकता।
यह सूत्र सर्व स्थान पर, सर्व काल मे, प्राप्त करने के विषय वाली सर्व वस्तुप्रो के लिए प्रयोग करने योग्यUniversally applicable -सर्व देगीय सूत्र है । निस्सदेह इस कथन को भी सापेक्ष-अन्य अपेक्षाओ के अधीन समझना चाहिए। ____ मजा तो तब आएगा जब हम इस गन्दावलि के वाद 'जान' गब्द रखे।
नानक्रियाभ्या जानम् "ज्ञान प्राप्त करने के लिए भी जान और क्रिया की आवश्यकता है" अथवा "नान पूर्वक की गई क्रिया के द्वारा ही ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।"
यह वात भली भाँति समझने योग्य है। यहाँ हम जान के दो विभाग करते है, एक तो 'वह जान जो प्राप्त करना है, और दूसरा 'उसे प्राप्त करने के लिए आवश्यक जान ।' इनमे पहला 'साध्य' है और दूसरा 'साधन' है ।