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२६२ ववई से टोकियो जाना हो तो हमे टोकियो जाने के रास्तो का ज्ञान होना चाहिए । हर किसी गाडी, नौका या हवाई जहाज मे चढ वैठने से टोकियो नही जाया जा सकता। यहाँ हम पहले निश्चय करते है कि हमे टोकियो जाना है। फिर वहाँ पहुँचने के मार्ग टूटते है । अनुकूलता एव ग्रावश्यकता के अनुसार द्रव्य और काल के सयोगो के अनुसार हम नौका मार्ग या विमान मार्ग निश्चित करते है और तब टोकियो पहुँचने के लिए आवश्यक ज्ञान के अनुसार किया करते है।
हम समुद्र के दर्शन करना चाहते हैं। इसके लिए हम ऐसे स्थान को पसन्द करते है जहाँ ममुद्र हो, समुद्र तट हो । ऐसा करने के बदले यदि हम गीर के जगलो मे या हिमालय को पर्वत माला में भटकना शुर करे तो क्या हमे समुद्र के दर्शन होगे?
'ज्ञानक्रियाभ्या ज्ञानम्' जब हम यह वाक्य कहते है तव उससे निम्नलिखित बाते निश्चित होती है -
( १ ) हमे ज्ञान प्राप्त करना है। (२) जो ज्ञान हम प्राप्त करना चाहते हैं उसे पाने के
मार्ग रूपी ज्ञान यदि हमारे पास न हो तो वह ज्ञान हमे नही मिल सकता । ज्ञान प्राप्त करने के मार्ग की जानकारी भी एक 'ज्ञान' ही है, अतः 'हमे ज्ञान प्राप्त करने के मार्ग का ज्ञान भी प्राप्त
करना है ।' (३) ज्ञान प्राप्त करने के मार्ग का ज्ञान प्राप्त कर के,
इस ज्ञान के अनुसार हमे क्रिया करनी है, इसके लिए हमे कार्यवद्ध-क्रियाशील बनना है ।