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________________ २६० और क्रिया की एक अत्यन्त सरल और सुन्दर व्याख्या दो है । "अमुक कार्य करने योग्य है ऐसी समझ सो जान और उस कार्य को अमल में लाना मो क्रिया।" उदाहरण के तौर पर 'असत्य बोलना पाप है' यह नमझना 'जान' है और 'असत्य बोलने का त्याग करना' क्रिया' है । इसी तरह 'सच बोलना धर्म है' यह समझना 'जान' है ' और 'सच ही बोलना' 'क्रिया है। अब यहाँ हम तुरन्त हो समझ सकते हैं कि 'हमेगा सत्य ही बोलना चाहिए, अमत्य कभी न बोलना चाहिए' ऐसी समझ-रुपी जो ज्ञान है उमका यदि क्रिया रूपी अमल न किया जाय तो ऐमी नमझ-ऐने ज्ञान से क्या अर्थ निकलेगा ? अर्थात् इस ज्ञान के क्रिया स्पी अमल के विना ज्ञान से कोई लाभ नही हो सकता। ___ इसी तरह, क्या धर्म है, क्या करने योग्य है और क्या छोडने योग्य है, इन से सम्वन्धित ज्ञान से रहित कोई भी क्रिया हम करे तो वह भी अर्थहीन और कभी कभी तो अनर्थ कारक भी हो सकती है। इन दोनो के सुमेल के विना हम कोई प्रगति नही कर सकते। __एक सीधा सादा दृष्टान्त ले । हम एक कारखाना खोल कर उसमे 'हवाई जहाज' बनाना चाहते है । हवाई जहाज सम्बन्धी सम्पूर्ण ज्ञान एव उसे बनाने की क्रिया-- Technical knowledge and processing-इन दोनो के सुमेल के विना हम हवाई जहाज की पूंछ (Tail) भी नही बना सकेगे। घर मे रसोई करते समय भिन्न भिन्न खाद्य वस्तुएँ बनाने का ज्ञान और उसके लिए आवश्यक मेहनत-क्रिया-इन दोनो मे सुमेल होगा तभी रुचिकर भोजन तैयार हो सकेगा।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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