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की किसी भी वस्तु का नाम रखे तो भी उसमे 'ज्ञान' और 'किया' ये दो शब्द तो हमे रखने ही होगे। 'ज्ञान' 'क्रिया' ये दो ननातन गन्द है। इन दोनो के विषय मे हम 'अनादिअनन्त अथवा शाश्वत युगल'-ऐसे शब्दो का प्रयोग भी कर सकते हैं।
समार मे पुरुप और स्त्री को एक रथ के दो पहिये माना गया है । ये दोनों पहिये अनडिन हो दोनो मे सुमेल हो, तभी यह रथ व्यवस्थित गति कर सकता है। परन्तु ज्ञान और क्रिया को जोडी तो इतनी महत्त्वपूर्ण, इननी अधिक आवश्यक है इन दोनो के साथ वी-पुरुप की जोडी की तुलना तो विराट के सामने वामन के समान है।
कोई भी कार्य हो, फिर चाहे वह भीतिक क्षेत्र का छोटे से छोटा, या वडे मे वडा कार्य हो चाहे आध्यात्मिक क्षेत्र का,
आत्मा की मोक्ष प्राप्ति के लिए कठिन से कठिन कार्य हो, ज्ञान और क्रिया की इस अपूर्व जोडी के महयोग के विना सिद्ध नहीं हो सकता।
श्रद्धा और बुद्धि के सहयोग का जो महत्त्व है उससे कई गुना अधिक महत्त्व ज्ञान क्रिया त्पी युगल का है। इन दोनो को अलग कर दीजिए तो कुछ भी कार्य नहीं हो सकेगा । यह एक अविभाज्य युगल-Inseparable couple है। यदि ज्ञान अकेला पड जाय तो वह कजूस के घन की तरह निरर्थक-वन्व्य हो जाता है। जान से विलग हुई क्रिया भी इसी तरह वन्ध्या -Unproductive-और निरर्थक Useless बन जाती है।
वाल (अबोध) जीवो के लिए जैन तत्त्वविशारदो ने ज्ञान