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"हाँ, तो अब बताओ कि यह डॉलर किसकी तरह गोल दिखाई देता है ? नारगी की भाँति गोल दिखाई देता है ?"
"यह तो आभास है ।" उसने जबाव दिया ।
"तो फिर, पृथ्वी नारगी की भाति गोल है या थाली की भाति गोल है इस वात का निर्णय करते समय आधुनिक विज्ञान को भी 'ग्राभास' नही हुआ, इसका क्या प्रमाण है
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यह सुनकर वह विद्यार्थी सोच मे पड गया । कुछ देर उसे विचार करने देकर मैने दूसरा प्रश्न पूछा ।
" तुमने रेल गाडी मे यात्रा तो अनेक वार की होगी । गाडी जव गति मे हो उस समय यदि खिडकी से बाहर की थोर देखे तो जमीन, पेड-सभी कुछ मानो दौडते हुए नजर आते है । तुम्हे भी यह अनुभव हुग्रा ही होगा ? सच पूछा जाय तो ये सब चीजें अपनी-अपनी जगह पर स्थिर होते हुए भी मानो वे गतिशील हो ऐसा प्रतीत होता है, यह वात ठीक है ?"
"हाँ ऐसा दिखाई देता है सही । "
"ठीक इसी तरह मान लीजिये कि किसी छोटे से स्टेशन पर दो गाडियाँ खडी हुई है । इनमे से एक गाडी समय होते ही आगे चलना शुरू करदे और अभी तक स्टेशन पर ही खडी हुई गाडी मे बेठ कर जब हम दूसरी गाडी की ओर नजर दौड़ाते है तव हमे ऐसा अनुभव होता है, मानो जिस गाडी मे हम बैठे हुए हैं वही आगे वढ रही हो । लेकिन जब