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वाते 'असदिग्ध और निश्चित' हैं । छोटा बालक वडा हो गया, अव वचपन की टोपी मौजूद होते हुए भी टोपी के तौर पर उसे काम नही लग सकती, इसलिये 'टोपी नही है' यह भी सच ही है।
उसी तरह 'स्व'और 'पर' ये दोनो शब्द भी अनिश्चितता सूचित नहीं करते, निश्चितता ही सूचित करते है । उदाहरणार्थ जब हम घर मे शाक सुधारने का चाल या छूरी टूटते है, तव हमे चाकू है, अथवा 'चाकू नहीं है। ऐसे दो परस्पर विरोधी उत्तर मिलते है । ये दोनो निश्चित उत्तर है । जब चाक है तव वह निश्चित उत्तर है और जव चाकू नही है तब वह भी निश्चित उत्तर है।
अव यो समझिये कि जब 'चालू नहीं है' ऐसा जवाब मिला, तव एक चाकू तो घर मे था । वह चाकू वच्चो के
खेलने के लिये था और कु ठित था । अत वह अभीष्ट उपयोगी चान नहीं है । इसलिये जब यह कहा जाता है कि 'चान नहीं है' तब वह पर द्रव्य, पर क्षेत्र, पर काल और पर भाव की अपेक्षा से कहा जाता है । चाक के सिवा और अनेक वस्तुएँ घर मे होते हुए भी 'स्वद्रव्य' रूप चाकू वहाँ नहीं है । दूसरे के घर मे भले हो,पर हमारे घर मे 'स्वक्षेत्र' मे नही है । सुबह या कल था परन्तु अभी 'स्वकाल' मे नही है। जो खिलौना बना पडा है वह कु ठित है, तीक्ष्ण नही है, उसमे कु ठितत्व परभ्राव है, इसलिए स्व-भाव मे चाकू नही है।
अत जब हम 'नहीं' कहते है, या 'है' कहते है तव वह निरपेक्ष, स्वतन्त्र या स्व-आधारित, कथन नहीं होता। वह कथन सापेक्ष, अपेक्षायुक्त, और सम्बन्ध रखने वाला Relative है।