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निश्चय और व्यवहार नय का यह विषय समाप्त करने से पहले एक बार फिर याद करले कि 'हमे निश्चय को साध्य अथवा वस्तु के शुद्ध स्वरूप के तौर पर मानना है, और व्यवहार को उसकी प्राप्ति के साधन-रूप मे मानना है। साधन का त्याग करने से जिस तरह साध्य अप्राप्य वन जाता है उसी तरह व्यवहार को छोड कर निश्चय मार्ग पर कोई प्रगति नही हो सकती। ___इन दोनो वस्तुओ का निर्णय करने मे स्याद्वाद हमारा मित्र एवं सहायक है। जब हम कोई भी व्यावहारिक या पारमार्थिक कार्य करते हैं तव उसमे हमारी कोई भूल हो रही है या नहीं, यह निश्चित करने का साधन भी 'स्याद्वाद' है । इससे फलित होता है कि कोई भी व्यवहार या परमार्थ शुरु करने के पहले, यदि हम इस अद्भुत, अभूतपूर्व और अलौकिक स्याद्वाद पद्धति से उसकी जांच कर ले तो उसमे भूल होने की सभावना नही रहेगी।
अब आपको स्याद्वाद से युक्त अनेकान्तवाद का तत्त्वज्ञान अद्भुत परिपूर्ण, एक अनूठा और स्वीकार्य प्रतीत हुआ या नहीं ?
हमारी नयविषयक यह विवेचना यहाँ समाप्त करने से पहले एक बात का स्पष्टीकरण आवश्यक है। यहाँ इस विषय की जो चर्चा की गई है वह विल्कुल सामान्य तथा प्राथमिक परिचय तक सीमित है। इसका यथार्थ एवं तात्त्विक विवरण करने के लिए अनेक दृष्टान्तो की तथा अतिशय विस्तार की आवश्यकता है।
यहाँ जो सात नय बताये गये है वे मुख्य मुख्य नय है ।