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शिक्षा देने वाले कॉलेज में प्रामानी से स्थान मिलने के कारण वहाँ जाय तो क्या नतीजा होगा? ___ गृहस्थजीवन के कार्य मे भी ऐसे अनेक प्रसग उपस्थित होते है। आमदनी में से पैसा वचा कर अपना खुद का मकान बनवाना हो तो मनुष्य उस ध्येय की सिद्धि के लिए अपनी श्रामदनी मे से बचत करने लगता है । इस प्रकार बचा कर कुछ रकम इकट्ठी करने के बाद यदि उमका ध्यान रेडियो, रेफ्रीजरेटर, मोटर आदि वरतुनो की ओर जाय, या वह अन्य फालतू मौजशोक मे पड़ जाय तो फिर वह वनवा चुका मकान !
पुत्र के लिए सुयोग्य कन्या हूँढनी हो तब हमारा ध्येय होना चाहिए 'अपने घर के अनुरूप अमुक अमुक गुणो से युक्त कन्या' । इसके बदले यदि हम धनवान की पुत्री, या रूपवती या ऐसी अन्य किसी एक वात को ही लक्ष्य मे रख कर सम्बन्ध कर ले तो क्या परिणाम पाएगा?
यदि इन सब वस्तुप्रो पर हम विचार करे तो हम प्रासानी से समझ सकेगे कि जीवन के दिन व दिन के व्यापार मे भी निश्चय और व्यवहार के बीच सामञ्जस्य की अनिवार्य आवश्यकता है । इस क्षेत्र मे जब अपवाद का आचरण करने का प्रसग आवे तब मूल ध्येय को भूल कर यदि हम काम करे तो ऐसा अपवाद-याचरण हमे खाई मे डाल देगा।
यहाँ एक वात पुन याद कर ले। दैनदिन जीवन के अपने आचरण निर्धारित करने मे भी यदि हमारी मुख्य दृष्टि धर्म पर न हो, सद्धर्म बताने वाले सद्विचार ( तत्त्वज्ञान ) पर न हो-तो अन्ततोगत्वा सुख के भोक्ता हम कभी नही बन सकते।