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[ १८ ] व्यवहार नय सग्रह नय से विलकुल विपरीत वात करता है । परन्तु रोजाना जीवन मे हमे ऐसा बहुत देखने को मिलता है। जिम ममय जिस अर्थ मे वस्तु का उल्लेख करने में काम बनता हो उस अर्थ मे वैसे गन्दो का प्रयोग होता ही है । मिठाई बेचने वाले की दुकान पर 'मिठाई मिलती है। ऐसा हम सामान्य अर्थ मे कहते ही है। हमे जब पेडे, बरफी या हलवा खरीदना हो तव हम उमी दुकान को 'पेडे या हलवे की दुकान' भी कहते है। अत इन दोनो नयो के अभिप्राय एक दूसरे के विरुद्ध होते हुए भी जीवनकार्य मे एक दूसरे के पूरक तथा उपयोगी हैं।
यहाँ फिर हमे 'स्यात्' गब्द ध्यान में रखना चाहिये । जव स्याद्वादी इस व्यवहार नय के द्वारा वात करेगा नव वह वस्तु के विशेष स्वरूप की ही बात करेगा। फिर भी स्याद्वाद अन्य नयो के अभिप्रायो को भी समभाव से स्वीकार करता है, यह याद रखना चाहिए। अनेकान्त की यह विशेषता है। ___ इन तीन नयो की एक दूसरे में उत्तरोत्तर भिन्नता का
झे परिचय हो गया। प्रथम नय वस्तु के सामान्य और विशेष इन दो स्वरूपो को अलग अलग बताता है। दूसरा इन मे से सामान्य स्वरूप का वर्णन करता है और तीसरा विशेष स्वरूप का परिचय देता है। ____ हम पहले कह चुके हैं कि ये तीनो नय 'द्रव्यार्थिक' अर्थात् वस्तु के सामान्य अर्थ का अनुसरण करने वाले है। फिर भी यहाँ हमने देखा कि व्यवहार नय वस्तु का विशेष स्वरूप बतलाता है। स्वभावत कोई यह पूछेगा कि “ऐसा क्यो" ?