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समझ मे आ जायगा कि यह संग्रह नय वस्तु के सामान्य स्वरूप का ही मात्र परिचय करवाता है, फिर भी दूसरे नयो का विरोध नही करता ।
(३) व्यवहार नय अब यह व्यवहार नय क्या कहता है सो देखे ?
यह नय वस्तु के केवल विशेष स्वरूप को ही मानता है । संग्रह नय ने वस्तु का सामान्यरूप से जो सग्रहीकरण किया है, उसका विभाजन कर वस्तु मे रहे हुए विशेष अर्थ को अलग कर के उस 'विशेष' का परिचय कराने का काम यह व्यवहार नय करता है । यह नय विशेष से भिन्न सामान्य की और दृष्टि ही नही फिराता ।
अग्रेजी मे इस नय को Practical, Individual, Distributive of Analytical approach कहते है । इसे Gradations भी कह सकते है ।
यह व्यवहार नय वस्तु को विशेष धर्म वाली ही मानता है । उसके अभिप्राय के अनुसार विशेष से रहित सामान्य खरगोश के सीग जैसा है । यदि हम केवल 'जानवर' शब्द वोले तो उसमे पूँछ वाले और विना पूँछ के, सीग वाले और विना सीग के आदि अनेक जानवरो का समावेश हो इसलिये उसका स्पष्ट अर्थ नही समझा जा सकता कहे कि ' वनस्पति लीजिये' तो उसमे ग्राम, नीम, अमरूद यदि विशेष भाव के सिवा दूसरा क्या है ? विशेष अर्थ मे न वोला जाय तो कोई क्या खरीदे ? 'सामान्य' से कोई अर्थक्रिया नही होती, विशेष पर्यायो ( ग्रथं या स्वरूप ) से ही कार्य होता है ।
जाता है । यदि कोई