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यहाँ हमे यह याद रखना चाहिए कि यहाँ जो 'विशेष' वताया जाता है वह 'सामान्यगामी विशेष' है, इसलिए व्यवहार नय का समावेश 'द्रव्यार्थिक' मे किया गया है । अन्तिम चार नय पर्यायार्थिक नय है । इन नयो की दृष्टि पहले तीन की अपेक्षा सूक्ष्म है और इन नयो मे हमे 'विशेषगामी विशेष' देखने को मिलता है । व हम चौथे नय का परिचय देगे ।
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( ४ ) ऋजुसूत्र नय - यह नय स्थूल और सूक्ष्म प्रकार वस्तु की वर्तमान अवस्था बतलाता है, ग्रहण करता है । यह वर्तमानकालवर्ती तथा अपनी ही वस्तु को मानता है । अग्रेजी मे इसे 'The thing in its present condition' ( वस्तु अपनी वर्तमान अवस्था मे ) कहा जा सकता है । यह नय वस्त की भूत तथा भावी अवस्था को नही मानता । यह वस्तु के अपने वर्तमान पर्यायो ( स्वरूपो ) को ही मानता है । परायी वस्तु के पर्याय को यह स्वीकार नही करता है । यह ऐसा सूचित करता है कि परायी वस्तु के पर्यायो से कभी अपना काम नही होता । भूत, भावी तथा पराया, ये तीनो ही कार्य करने में असमर्थ है, इसलिये यह नय उन्हे असत् तथा आकाशकुसुमवत् मानता है ।
वर्तमानकाल के जिन सूक्ष्म तथा स्थूल भेदो को ऋजुसूत्र न स्वीकार करता है वे सामान्य वर्तमानकाल तथा चालू वर्तमान काल हैं । 'आज' और 'अव' ये दोनो शब्द वर्तमान के द्योतक होते हुए भी उनमे स्थूल तथा सूक्ष्म ये दो भाव रहे हुए है । ऋजुसूत्र नय वर्तमानकाल को इन दो भेदो के साथ स्वीकार करता है ।
इस नय की दृष्टि से जो वर्तमानकाल मे नही है और जो