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भिन्न वस्था
(Different forms or appearances of the substance) के तौर पर जानते हैं । जब मूल द्रव्य मे हम किसी अवस्थाभेद की कल्पना करते है तब उसमे विशेष ( खास ) अर्थ निकलता है । उदाहरणार्थ - मनुष्य के तौर पर मनुष्य 'सामान्य' है, परन्तु यही मनुष्य जब किसी सभा मे व्याख्यान देता हो तव वह 'वक्ता' इस विशेष अर्थ मे प्रस्तुत होता है । ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ तथा एवभूतये चार नय, इस तरह पर्यायार्थिक ग्रर्थात् वस्तु का विशेष रूप में परिचय कराने वाले है । फिर ये विशेष स्वरूप भी, भिन्न भिन्न और परस्पर विरोधी हो सकते है, यह ध्यान मे रखना चाहिये ।
इस दृष्टि से, प्रथम तीन नय, नैगम, सग्रह और व्यवहार, सामान्यार्थिक नय कहलाते है, ग्रन्तिम चार नय-ऋजुसूत्र शब्द, ममभिस्ट और एवभूत विशेपार्थिक नय कहलाते है । उनके लिये पारिभाषिक शब्द ऊपर बताये है सो क्रमश द्रव्यार्थिक और पर्यायाथिक है ।
इसमे एक और समझने योग्य महत्त्व की बात है । पहले हम द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव- इस अपेक्षाचतुष्टय की, (चार श्राधारो की ) बात कर चुके हैं। इसी तरह यहाँ नय का विचार करते समय चार शब्दो वाली एक और बात हमे समझ लेने की ग्रावश्यकता है ।
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इसे 'निक्षेप' नाम से पुकारा जाता है । निक्षेप भी चार है, जिनके नाम निम्नानुसार हे
(१) नाम निक्षेप
(२) स्थापना निक्षेप