________________
१६१
यह सुनकर पहले तो जगजीवन भाई चौके, परन्तु जब उन्हें मारी बात का पता चला तो हम पडे । चाचा ने समझे विना, कैने अर्थ का अनर्थ कर दिया था । जब उन्होने चाचा को यह बात समझाई तब उनके (चाचा के) चित्त को शान्ति मिली। इस प्रकार, वस्तु श्रीर शब्द के सामान्य तथा विशेष अर्थ का ग्रच्छी तरह ज्ञान न हो तो बहुत से विषयो में और याग तौर पर तत्त्वज्ञान सम्वन्धी उच्च भूमिका के विषय में ' अर्थ का अनर्थ होने की संभावना होती ही है ।
पुन मूल विषय पर याते हुए अब इस बात पर अपना ध्यान आकर्षित करे कि जैसा कि पहले परिचय के प्रकरण में बताया गया है, शास्त्रकारो ने सात नयो को दो भागो मे विभक्त किया है।
(१) द्रव्याथिक यहाँ ' द्रव्य' शब्द का अर्थ 'सामान्य' (General) समझना चाहिए । जब हम 'मनुष्य' या 'जानवर' शब्द का प्रयोग करते हैं, तब उनमें से 'मव मनुप्यो जैना यह भी एक मनुष्य,' या 'सव जानवरो जैसा कोई जानवर' ऐसा सामान्य अर्थ निकलेगा । उसी तरह प्रत्येक वस्तु मे 'सामान्य
'भी होता है । 'नैगम' 'मग्रह' और 'व्यवहार' — ये तीन नय वस्तु के सामान्य अर्थ का अनुसरण करते है, तथा सामान्य अर्थ का बोध कराते है । यहाँ फिर यह खास याद रखना रहा कि यह सामान्य अर्थ भी भिन्न भिन्न और परस्पर विरोधी प्रतीत होने वाला हो सकता है ।
-
(२) पर्यायाथिक – यहाँ 'पर्याय' शब्द का अर्थ 'विशेष' किया गया है । द्रव्य को हम किसी वस्तु ( Substance) के तौर पर पहचानते है और 'पर्याय' को उस वस्तु की भिन्न